भगवत प्राप्ति का सरल उपाय, प्रेमानंद जी महाराज कथा

भगवत प्राप्ति का सरल उपाय, प्रेमानंद जी महाराज कथा

एक बहुत ही बड़े भक्त हुए हरिपाल इन्होंने अपने Guru से एक बार पूछा की भगवत प्राप्ति का सबसे सरल उपाय क्या है उनके Guru ने जो जवाब दिया पूरा विश्लेषण इस ब्लॉक में.. Premanand ji maharaj

गृहस्थ के साथ भगवत प्राप्ति

जब हरिपाल ने अपने गुरु से पूछा कि भगवान इस मायावी दुनिया में हम अपने सभी कार्यों करते हुए खेती गृहस्ती बाल बच्चे घर द्वार दुकान नौकरी सब करते हुए कैसे भगवत प्राप्ति कर सकते हैं.
तो गुरुवर ने आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम संत की सेवा करो संत की सेवा भगवान की सेवा मानी जाती है
किसी भी संत को देखो और सबसे पहले उनके चरण वंदना करो आशीर्वाद लो उनको बैठाओ पकवान बनवाओ और खिलाओ यह सबसे बड़ी सेवा है, जिससे तुम इस संसार में ग्रस्त के साथ-साथ भगवान की सेवा में भी अपना योगदान दे सकते हो.

हरिपाल की संत सेवा

हरपाल ने अपने गुरु से आशीर्वाद लिया और वह संतों की सेवा करना शुरू कर दिया और उनके चर्चे बहुत दूर-दूर तक होने लगे जिससे जो भी साधु संत वहां से गुजरते वह एक बार हरिपाल की कुटिया में आकर भोजन जरूर पाते और धीरे धीरे हरिपाल की जितनी भी जमा पूजी थी उन्होंने सब संतो की सेवा में लगा दिया , फिर भी हरिपाल बाजारों से कर्जा लेकर, बड़े-बड़े साहूकार और दुकानदारों से कर्जा ले लेकर संत सेवा करते रहें.

हरिपाल ने शुरू की चोरी

फिर हरिपाल ने सोचा कि संतों की सेवा नहीं रुकेगी चाहे इसके लिए चोरी ही क्यों ना करनी पड़े फिर उन्होंने जंगल से गुजरते हुए रास्ते जो की बहुत ही प्रचलन में थे वह लोगों को डरा कर धन लेते और संतो को खिला देते
लेकिन एक शर्त रखी की जिसके भी मुंह से राम कृष्ण और भगवान के नाम निकलेंगे और गले में कंठी माला होगी उसकी वह धन नहीं लूटेंगे, अब यह बात धीरे-धीरे फैल गई तो सब कोई राम-राम कृष्ण कृष्ण कहते और तिलक लगाकर उस रास्ते से जाने लगे , हरिपाल जी सोचने लगे कि अब क्या करें अब संतो को कैसे भोजन कराए यह बात जाकर उन्होंने अपनी पत्नी को बताई
फिर हरिपाल ने अपने पत्नी से कहा कि देखो अगल-बगल कहीं से कुछ अन्य मिल जाए जिसको बनाकर हम साधु संतों को खिला सके इतने साधु यहां घर में बैठे हैं । तो वह जाती हैं परंतु सभी लोग अपना दरवाजा बंद कर लेते हैं क्योंकि जो इन्होंने पहले से लिया था अभी वही नहीं दिए है ,
अब हरि पाल जी भगवान के सामने हाथ जोड़कर बोल प्रभु अब आप ही हमे राह दिखाइए अब हम क्या करें इतने साधु संत भूखे है कैसे भेजू इनको अपने घर से,

भगवान स्वयं भक्त के पास चले आए

तो भगवान हरिपाल के गांव में गए और उनको गांव के बाहर बुलवाया और बोले कि भाई हम एक सेठ है और सुना है कि रास्ते में बहुत चोर है जो लूट लेते हैं तो यह लो एक सोने की सिक्का और हमें रास्ता पार करवा दो हम व्यापार करने शहर जा रहे हैं अगर आप हमें सुरक्षित रास्ता पार करा देते हैं तो हम आपको एक सोने का सिक्का देंगे, उन्होंने वो सिक्का अपने पत्नी को दिया और कहा कि ये सोने का सिक्का है जाओ बाजार से संतो के लिए पकवान लाओ ,
फिर हरिपाल साहूकार के पास गए और देखें कि यह इतनी आभूषण पहने हुए हैं और ना भगवान का नाम ले रहे हैं ना कोई चंदन टीका लगाए हैं ना कोई कंठी माला मतलब संसारी है तो इनको लूट लेंगे तो महीना तक संत सेवा होगी,
और चल दिए भाला लेकर आगे आगे चल रहे थे फिर बीच रास्ते में जाकर अचानक से पीछे मुड़े और बोले ओए चलो सभी आभूषण निकाले और मुझको दे दो, तो सेठ जी और उनकी पत्नी सारी आभूषण निकाल के रख दिए लेकिन रुक्मणी जी उनके हाथ में एक अंगूठी थी जो वह नहीं दी थी वह अंगूठी भगवान ने उनको पहनाई थी तो हरिपाल का नजर गया और बोले कि यह अंगूठी क्यों नहीं निकाल चलो निकालो इतने में कितने दिन संतों की सेवा होगी, परंतु वह नहीं निकाली तो फिर हरिपाल ने उनका हाथ पकड़ा और अंगूठी मोड़ के निकाल दिया ,

भगवान का असली रूप
तब तक प्रभु अपने असली रूप में आए वह चमत्कारी रूप वह तेज देखकर हरिपाल प्रभु के चरणों में गिर गया कि प्रभु हमसे गलती हो गई हमे माफ करना हमने आपको पहचाना नहीं हमने संतो के लिए यह सब किया और उनके चरणों में गिर गए, और आप बीती बताने लगे की कैसे-कैसे उन्होंने अपना सब कुछ संतों की सेवा में लगा दिया जब कुछ नहीं बचा फिर उन्होंने यह चोरी शुरू की यह सुनकर प्रभु उनको अपने छाती से लगा लिए और कहा तुम मेरे सबसे ज्यादा पसंदीदा प्यारे भक्त हो ये ले जाओ ये महारानी का आभूषण है ये बेच के अपने सभी कर्ज चलाओ और ये कभी खत्म नहीं होने खूब संतो की सेवा करो , तब तक हरिपाल जी बोल पड़े प्रभु अब आप आ ही गए हो तो भोजन करके ही जाना तो प्रभु बोले कि जरूर हम सभी संतो के साथ ही भोजन करेंगे और फिर उन्होंने हरिपाल के घर अपना दिव्या अवतार दिया और सबको दर्शन दिए सभी संतों का भला हुआ और एक भक्त के वजह से सभी संतो का उद्धार हुआ..

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